मूल प्रवाहद्वारा गुवाहटीमा पत्रकार सम्मेलन

गुवाहटी, ७ नोभ । मूल प्रवाह अखिल भारत नेपाली एकता समाज पूर्वोत्तर भारत क्षेत्रीय समितिको आयोजनामा गुवाहटीमा पत्रकार सम्मेलन सम्पन्न भएको छ । पत्रकार सम्मेलन हालै आसाम राज्यमा सम्पन्न एनआरसीबाट करिब डेढलाख नेपाली भाषीहरु छुटेकाले सरकारको ध्यानाकर्षण गराउने उदेश्यका साथ सम्पन्न पारिएको समाजका महासचिव खगेश्वर शर्माले बताउनु भयो ।

व्यापक पत्रकारहरुको उपस्थिति रहेको उक्त कार्यक्रमको अध्यक्षता कृष्ण क्षेत्रीले र सञ्चालन अमित केसीले गर्नुभएको थियो । केन्द्रीय उपाध्यक्ष कपिल खनाल र महासचिव खगेश्वर शर्माले आतित्थ्यता गर्नुभएको थियो । पत्रकारहरुको जिज्ञासाप्रति अतिथिहरुले धारणा प्रकट गर्नुभएको थियो ।

पत्रकार सम्मेलनका दौरानमा क्षेत्रीय समितिले हिन्दी भाषामा एक प्रेस विज्ञप्ती गरेको थियो । विज्ञप्तीमा भारतको केन्द्र तथा राज्य सरकारहरु १८१६ र १९५० दुबै संधीका तहत भारत प्रवेश गरेका नेपालीहरुलाई एउटै नजरियाले हेरेर व्यवहार गर्नु गल्ति भएको बताइएको छ । क्षेत्रीय सचिव कृष्ण क्षेत्रीद्वारा हस्ताक्षरित उक्त विज्ञप्तीमा अगाडि भनिएको छ:
“सर्व प्रथम हम मूल प्रवाह अखिल भारत नेपाली एकता समाज पूर्वोत्तर भारत क्षेत्रीय समिति कि ओर से आप सभी पत्रकार बन्धुओं को हार्दिक अभिनन्दन करते हैं ।

हमारा संगठन मूल प्रवाह अखिल भारत नेपाली एकता समाज ७ नोभेम्बर १९७९ को एतिहासिक धार्मिक नगरी बनारस में गठन हुई थी । हामारा संगठन ने भारत स्थित नेपालीयों की सामाजिक उत्थान एवं हक हित के लिए कार्यरत है । इस दौरान नेपाली भाषीयों को एकता वद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह की है । हाल ही में आसाम सरकार द्वारा जारी एनआरसी के प्रति संगठनका ध्यानाकषर्ण हुआ है, इस में बहुत से नेपाली भाषीयों को एनआरसी से बंचित कर अयोग्य घोषित कर दिया गया है ।

भारत में दो प्रकार के नेपालीयों का बसोवास है, प्रथम १८१६ की सुगौली संधी के तहत जमिन के साथ भारत के नागरिक बने और दुसरे ३१ जुलाई १९५० की नेपाल–भारत शान्ति तथा मैत्री संधी के तहत आए प्रवासी नेपाली । सन १८१४ से १८१६ तक चला ब्रिटिस इंडिया और नेपाल के बीच का युद्ध समापन १८१६ के सुगौली संधी के साथ हुआ । जिस में नेपाल का बहुत सा भुभाग भारत का हिस्सा बना और उस भुभाग के बासिन्दे जमिन के साथ भारतीय नागरिक बने । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सेना में भर्ती हुए नेपाली बोलने वाले भारतीय सैनिक भी आसाम और पूर्वोत्तर भारत सहित भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे हैं । दोनों प्रकार के नेपालीओं का भाषा तथा सांस्कृति, रितिरिवाज, धर्म व संस्कार समान प्रकार के हैं । भारत सरकार दोनो प्रकार के नेपालीयों को एकही नजरिया से देख्ती है ।

तात्कालिक काँग्रेस आई के नेतृत्व केन्द्र सरकार ने २४ मार्च १९७१ को आसाम के नेपाली भाषी लोगों को भारत के नागरिक के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया था । सरकार का उक्त निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायलय में शिकायत दायर करने के बाद, सर्वोच्च न्यायलय ने सरकार के उक्त निर्णय को मान्यता दि और आगे दिशा निर्देश अनुसार २४ मार्च, १९७१ तक आसाम में निवास के आधार पर नागरिकता दी जानी चाहिए ।

अत : पत्रकार बन्धुओं आप के प्रतिष्ठित मिडीया/पत्रपत्रि के माध्यम से निम्न विंदुओं में हम केन्द्र तथा राज्य सरकार के ध्यानाक्रषित करना चाहते हैं ।

१) कइ नागरिककों का नाम व सरनेम नमिल्नेका कारण (NRC) से बन्चीत हैं, उन्हें भी न्यूतम सर्त के आधार पर भी ( NRC) में सहभागि कि जाए ।

२) लम्बे समय से कृषी तथा पशुपालन पेशा में आवद्ध लोगों को ग्रेजिङ प्रमिट अँग्रेजों के समय से प्राप्त हैं उन्हें भी नि:सन्देश वैधानिक दें और (NRC) प्रदान करें ।

३) कई नागरिकों का अशिक्षा और अस्थायी पेशा के कारण एक प्रान्त वा इलाका से दुसरे इलाका में प्रवासन समस्या को झेलना पडता था, इस के चलते लिगेसी व आवश्यक वैधानिक प्रमाण जुटाने में असक्षम होना अहम कारण रही है । और सन १९८५ से पहले भारत में जन्म दर्ता के प्रावधान न होने के कारण से भी प्रयाप्त लिगेसी का समस्या है । अत: इस प्रकार के समस्याओं का सत्य तथ्य प्रमाणित के लिए स्थानीय प्रशासन से डोर टु डोर कार्यक्रम लागु करने के लिए अनुरोध करते हैं ।

४) सन १८१६ के सुगौली संधी भारत के संविधान निर्माण पूर्व हुइथी, इस संधी के तहत जमिन के साथ आए नेपाली लोग स्वत: भारतीय नागरिक होनी चाहिए । लेकिन भारत सरकार १८१६ और १९५० की संधी दोनों संधी के तहत भारत आए नेपाली भाषियों को समान नजरिया से देखती व व्यवहार करती है, इस प्रकार की नजरिया से हटकर उचित छानविन कर नेपाली भाषीयों को ( NRC) मे सहभागि कराए जाए ।

५. राष्ट्रिय नागरिकता पञ्जीकरण के दौरान कइ परिवार के सदस्यों में से किसी का नाम प्रकाशित हुआ तो वहीं लिगेसी मे किसी भाई वा वहन का प्रकाशित नहीं हुवा । अत: जिन के नाम प्रकाशित नहीं हुए हैं, उन के नाम प्रकाशित नहोने की कारण सम्बन्धित व्यक्तियों को स्पष्ट करवानी की माग करते हैं ।

६. नागरिकता का अधिकार अत्यन्त संवेदनशिल विषय है, पञ्जीकरण के लिए स्थानीय प्रशासन जमीनी तह पर संवेदनशिलता पूर्वक अपनी कर्तव्य का निरवाहन करना होता है । कोही भी व्यक्ति देश विहिन होने की स्थिति न आए । अगर ऐसा होता है तो, मानव अधिकार का घोर उल्लंघन होगा ।”

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